तप का अर्थ है तपना ,प्रयास करना,मेहनत करना
मिट्ठी ने मटके से पूछा , में भी मिट्ठी और तू भी मिट्ठी , परन्तु पानी बहा ले जाता है और तू पानी को अपने में समा लेता है तेरे अंदर दिनों महीनो तक पानी भरा रहता है ,पर वह तुझे गला नहीं पाता | मटका बोला , यह सच है की में मिट्ठी | पर में पहले पानी में भीगा ,पैरो से गुंथा गया , फिर चाक पर चला , उस पर भी थापी की चोंट खाई | आग में तपाया गया | इन सब राहो पर चलने के बाद , इतनी यातनाये झेलने और तपने के बाद मुझमे यह शक्ति पैदा हुई की अब मेरा पानी कुछ नहीं बिगाड़ सकता
मंदिर की चिढियो पर जड़े पत्थर ने मूर्ति में लगे पत्थर से कहा , भाई तू भी पत्थर , में भी पत्थर ,पर लोग तुम्हारी पूजा करते है और मुझे कोई पूछता तक नहीं | सुबह शाम तेरी आरती उतारी जाती है ,पर मुझे कोई जानता तक नहीं | तुम्हारे आगे लोग सिर झुकाते है ,और मुझे पांवो के नीचे रोंदा जाता है ,ठोकरे मारी जाती है | ऐसा भेद भाव और अन्याय क्यों होता है ? मूर्ति ने जवाब दिया ,यह तो सच है की में भी पत्थर हूँ और तू भी पत्थर है |
पर तू नहीं जानता है की मैंने अपने इस शरीर पर कितनी छेनिया झेली है , तुझे नहीं पता की मुझे कितना घिसा गया है | बहुत तरह के कष्ट झेलने के बाद मै यहाँ पहुंचा हु | तुमने ये सारी पीड़ा नहीं झेली है इसलिए तुम वही के वही पर हो |
ये दोनों काल्पनिक कहानिया है पर ये हमें बहुत कुछ सिखाती है , ये हमे बताती है की तप का कोई विकल्प नही है | सामान्यत हम सभी के पास दो हाथ , दो आँखे , और एक जैसा शरीर होता है , पर क्यों एक व्यक्ति अर्श पर पहुँच जाता है और दूसरा फर्श पर ही रह जाता है |
घर परिवार छोड़ कर जंगलो में जाना कोई तप नहीं है | तप है तपना ,प्रयास करना और मेहनत करना |
एक लड़का जो परीक्षा की तेयारी कर रहा है ,वह भी एक तप है | एक माँ जो रात –रात भर जागकर अपने बीमार बच्चे की सेवा कर रही है ,वह भी तप है |
देश का हर नागरिक जो अपने कर्तव्य का निष्ठा पूर्वक पालन करता है ,वह तप करता है जब भी हम अपने लक्ष्य पर चलते है , तो रास्ते में प्रलोभन आते है उन प्रलोभन में अधिकतर लोग फिसल जात्ते है , परन्तु जो उनमे अपने आप को स्थर रखता है वह योगी है , असल में वही तपस्वी है
तन ,मन और बुध्दि का तप ही हमको फर्श से अर्श तक ले जाता है , विनय परम तप है |
सूर्य तपता है इसीलिए प्रकाश देता है तभी वनस्पतियों को भोजन और प्राणियों को जीवन मिलता है|
धरती जितना तपती है उतनी ही उपजाऊ होती है ,शरीर को सुखाकर कृश करने या तपाने का नाम तप नहीं है | इच्छाओ को निरोध करना तप है भोगो को रोकना ही तप है |
हमारी देह एक रथ है , मन मानो लगाम है , बुध्दि सारथी है और गृहस्वामी अर्थात आत्मा रथ में सवार है | विषय –वासना के घोड़े पर दोड़ते इस देह रूपी रथ को मन और बुध्दि के द्वारा अंकुश में रखना ताप है | पांचो इन्द्रियों को तथा चार कषयो को रोक कर शुभ ध्यान की प्राप्ति के लिए आत्म –चिंतन करना और एकाकी ध्यान में लीन होना ही तप है |
स्वाध्याय करना परम तप है “ स्व “ माने निज का ‘ अधि ‘ माने ज्ञान और ‘अय’ माने प्राप्त होना | अर्थात निज का ज्ञान प्राप्त होना ही स्वाध्याय है |
यहां –वहां का ,कुछ भी पढ़ लेना स्वाध्याय नहीं है कर्म शत्रुओ का नाश करना तप कहलाता है कर्मो को शांतिपूर्वक भोगना और जीव हिंसा न करना तप कहलाता है
— संपादकीय द्वारा निर्मल जैन–