इस दुनिया में वे ही लोग है मृत्यु से डरते है जो स्वयं को नहीं जानते है और अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचानते है | अज्ञानता ही सभी दुखो की जड़ है |
अपने मूल अस्तित्व और विश्व – व्यापकता में सभी जीव एक अजन्मा आत्मा है , जिसके आकार –ग्रहण और आकार परिवर्तन का नाम ही जन्म व् मृत्यु है |
जन्म यदि “होना” है तो मृत्यु एक “होना” ही है , किसी प्रकार समाप्ति नहीं | मृत्यु मित्र है , अंत नहीं |
मृत्यु हमें शरीर पर भरोसा न रखकर , परमात्मा पर विश्वास , निष्ठा रखने की शिक्षा देती है |
संहार प्रगति व् विकास की पहली शर्त है | संहार ( पुरानी रचनाओ को नष्ट करना ) करके ही जीवन के स्वामी जगत के प्रतिपालन का अपना कार्य संपन करते है |
परमात्मा संहार के लिए संहार नहीं करते , बल्कि विकास की चक्रात्मक प्रक्रिया में एक उत्कृष्ट स्रष्टि के लिए जीवन की बगिया को और साफ सुन्दर व् निर्मल करते है |
मृत्यु ( उत्थान व् परिपूर्णता का पथ ) हमें मुक्त करने के लिए आती है |
यह जीवन के कठिन परिश्रम के बाद सेवा निवृति है | जो मर जाते है , वे हम पर तरस खाते है , वे हमें आशीर्वाद दे रहे होते है | आप उनके लिए शोक , संताप क्यों करते हो ? अभी भी समझ लो की आप एक आत्मा हो ( दिव्य अद्रश्य स्पन्दनशील शक्ति ) हो , शरीर नहीं |
अपने सांसारिक अनुभवों को अत्यधिक गंभीरता से न ले | यह संसार और इसकी प्रत्येक वस्तु एक ब्रह्माण्डीय स्व्प्न से अधिक कुछ नहीं है |
अपने ह्रदय के प्रत्येक कण के साथ आनंदमय जीवन का चिन्तन करो | जीवन तो प्रगतिशील है , चलता जाता है | मरनेवाले मरते है , डूबने वाले डूबते है , जो गिरता है गिरी ,पर तुम लोगो को गिरता देखकर क्यों विचलित होते हो , चले चलो , सफ़र में आगे क्या होगा देखा जायेगा |
वक्त के आगे सबके सिर झुक जाते है –
कुछ लाशो को कफन तक नशीब नहीं होता और कुछ पर ताजमहल बन जाते है
प्रत्येक मानवीय जीवन एक नाटक रचता है और प्रत्येक दिन की घटनाए उस नाटक को प्रस्तुत करती है |
इस ब्रह्माण्ड के नाटक में आप नहीं जान पाते है की कल आपको कोनसी भूमिका निभानी है |
आपको हर भूमिका के लिए तेयार रहना होगा | यदि आप खुश रहना चाह्त्ते है तो आपको भूमिका गौरव, निष्ठा ,विश्वास ओउर प्रसनता के साथ निभानी होगी |