पवित्र विचार एक वाणी है | मनुष्य अपनी ही विचार पध्दति के कारण है अपना स्वभाव और अपनी परिस्थति स्वंय करनेवाला होता है |
प्रत्येक घातक विचार अपना भयंकर शत्रु है | विचार जीवित पदार्थ है |
हम समाप्त हो सकते है ,पर हमारे विचार कभी भी नहीं मिट सकते है |बिना किसी बदले की आशा से ब्रम्हाण्ड में भेजा गया प्रत्येक विचार संचित होता जायेगा – वह हमारे पैरो में से एक बेडी को काट देगा और हमें अधिकाधिक पवित्र बनाता जायेगा | शुध्द विचार तलवार की धार से भी तीक्ष्ण होता है | विचार से सबकुछ संभव है | एकमात्र विचार से ही समस्त विश्व है |
मन की सभी प्रव्रतियो का मूल है – विचार |
विचार आपकी निजी – सम्पति है | शाश्वत सम्रधि का एकमात्र स्रोत विचार नियमन है |
मन के विचारो का विषयों के प्रति विस्तृत होते जाने का नाम ही बंधन है | और उनका सिमटना , त्याग ही मुक्ति है |
आपका जीवन वैसा ही है, जैसा आपके विचार है |
“ तुम्हारी ही भावना , तुम्हे धारणा के अनुसार फल देती है |
मनुष्य की द्रष्टि के अनुसार स्रष्टि होती है |”
मन को जैसे विचारो के साँचो में ढालोगे ,वह वैसा ही विकसित होगा | किसी वस्तु के लिए पहले से आशा मत बांधो | आशा मन में उपद्रव पैदा करती है |
संतोषी मन सदा तृप्त रहता है , आपके विचार और शब्दों में समानता होनी चाहिए |
हमारी मानसिक विचार की सबकुछ निर्भर करता है | आपके विचारो की सीमा ही आपके सम्भावना की सीमा है |
अपवित्र विचार जितने कम होंगे , शांति उतनी अधिक होगी | सभी रोग अपवित्र विचारो से आरम्भ होते है |
जो व्यक्ति शांत, ओर प्रसन नहीं है वह रोगी है |
पवित्र विचार ही जीवन के सम्पूर्ण स्वरूप का नव- निर्माण करता है |
“ दूषित विचारो को खिलने से पहले,
कलि की अवस्था में ही तोड़ फेंक देना चाहिए ”
प्रत्येक विचार मुख पर अपनी छाप छोड़ जाता है | व्यक्ति के सभी जन्मो के प्रमुख विचार उसकी आँखों में झलकते है |
मन में चिंता , भय , निराशा , क्रोध ,वासना , अंहकार , प्रतिहिंसा आदि दुर्भावनाओ के विचार मुख पर कालिमा पोत देते है |
जीवन के मूल स्रोत को ही सुखा देते है , विषाक्त कर देते है , जीवन को अशांत कर देते है कार्यदक्षता ,चेतनत्व ओंर तेजस्विता को मिटा देते है |
दिव्य संकल्प –
- सब कामनाओ को शांत कर दो |
- हर्ष – शोक के द्वंध को दूर कर दो |
- आसक्ति के महान दोष पर विजय पाओ |
- बहिर्मुखी व् अधोमुखी द्रष्टि को , द्रष्टिहीन कर दो |
- संकीर्ण ” में “ की सब तंग दीवारों को तोड़ डालो |
अपनी वास्तविकता और अस्तित्व का ज्ञान न होना ही अहम है |
अहंकार , अहंभाव के अतिरिक्त मन और कुछ नहीं है मन विचारो ,संस्कारो ,स्वभावो ,प्रेरणाओ ओर भावनाओ की एक पोटली है |
मन मल , वासनाओ और तृष्णाओ से परिपूर्ण है | इन्द्रियो का सार मन , मन का सार बुध्दी है , बुद्धि का सार अहंकार है तथा अहंकार का सार जीव है |
यह मिथ्या कल्पना ही की आप शरीर है , सब अनिष्टो का मूल है | जब कभी अहंकार प्रकट हो तो अपने आप से प्रश्न करे . इस “में “ का स्रोत क्या है ? में कौन हु ? जिसे आप संसार और जगत कहेते है | वह केवल मन ही है | सारा जगत भाव –मात्र है|
संसार में जितना सुख – दुःख का अनुभव् होता है , वह केवल मन की क्रिया से ही होता है |
“ स्वर्ग व् नरक बस आपके विचारो , शब्दों तथा कर्
मो का प्रतिबिम्ब है –
न इससे ज्यादा न इससे कम ”